Impact of Climate Change on Agriculture in Rajasthan: Solutions Through Geospatial Analysis
राजस्थान में कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: भू-स्थानिक विश्लेषण के माध्यम से समाधान
DOI:
https://doi.org/10.31305/rrjss.2024.v04.n02.012Keywords:
Himalayan Glaciers, Glacier Mass Loss, Climate Modeling, Hydrological ModelsAbstract
The study titled "Climate-Hydrological Modeling and Regional Water Security Strategies" offers practical and multi-tiered solutions to address the unprecedented mass loss of Himalayan glaciers due to global warming, the resulting changes in seasonal river flows, and the growing threat of long-term water scarcity. The research employs Remote Sensing and GIS-based techniques to precisely measure changes in glacial area and volume, and uses hydrological models such as HBV and SWAT to simulate melt-induced flow patterns. Additionally, GRACE and GLIMS datasets are integrated for model validation and uncertainty analysis. Key findings indicate that by the year 2050, glacier mass may decline by approximately 15%, and by 2100, the reduction could reach 30%. This would likely lead to an increase of 20% in peak summer flows and a 25% reduction in winter flows. Regional analysis revealed that the Eastern Himalayas are more prone to rapid melting and flow instability, while the Western Himalayas remain relatively stable. Based on these insights, the proposed water security measures include provisions from the National Water Policy, 2012, rainwater harvesting, managed aquifer recharge, transboundary agreements, and the establishment of real-time monitoring networks. These strategies aim to offer a sustainable and long-term solution to the Himalayan water crisis by integrating policy-making, community participation, and technological surveillance.
Abstract in Hindi Language:
क्लाइमेट-हाइड्रोलॉजिकल मॉडलिंग और क्षेत्रीय जल-सुरक्षा रणनीतियाँ” वैश्विक तापमान वृद्धि के परिप्रेक्ष्य में हिमालयी ग्लेशियरों में हो रहे अभूतपूर्व मास लॉस, उससे उत्पन्न मौसमी नदी प्रवाह परिवर्तनों और दीर्घकालिक जल-संकट से निपटने के लिए व्यावहारिक, बहु-स्तरीय समाधान प्रस्तुत करता है। इसमें रिमोट सेंसिंग एवं GIS आधारित तकनीकों से ग्लेशियर क्षेत्रफल एवं आयतन में बदलाव का सटीक मापन, एच बी वी एवं SWAT हाइड्रोलॉजिकल मॉडलों द्वारा पिघलन-जनित प्रवाह पैटर्न का सिमुलेशन तथा GRACE एवं GLIMS डेटासेट के माध्यम से मॉडल की मान्यता एवं अनिश्चितता विश्लेषण का समन्वित उपयोग किया गया है। अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष दर्शाते हैं कि 2050 तक ग्लेशियर मास में लगभग 15% और 2100 तक 30% तक की कमी आ सकती है, जिसके कारण ग्रीष्मकाल में चरम प्रवाह में 20% की वृद्धि और शीतकाल में 25% की कमी संभावित है। क्षेत्रीय भिन्नताओं के विश्लेषण से पता चला कि पूर्वी हिमालय में तीव्र पिघलाव एवं प्रवाह अस्थिरता अधिक है, जबकि पश्चिमी हिमालय अपेक्षाकृत स्थिरता बनाए रखे हुए हैं। इसके आधार पर प्रस्तावित जल-सुरक्षा उपायों में राष्ट्रीय जल नीति,2012 के प्रावधान, वर्षा जल संचयन, प्रबंधित जलभृत पुनर्भरण,ट्रांस-बाउंडरी समझौते एवं वास्तविक समय मॉनिटरिंग नेटवर्क शामिल हैं। ये रणनीतियाँ नीति-निर्माण, सामुदायिक सहभागिता और तकनीकी निगरानी को एकीकृत कर हिमालयी जल संकट का दीर्घकालिक, टिकाऊ समाधान प्रदान करने में सक्षम हैं।
Keywords: हिमालयी ग्लेशियर; ग्लेशियर मास लॉस; क्लाइमेट मॉडलिंग; हाइड्रोलॉजिकल मॉडल
References
राजस्थान सरकार, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग. राजस्थान जलवायु परिवर्तन नीति. जयपुर: राजस्थान सरकार, 2023.
भारत सरकार, पर्यावरण, वानिकी एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय. “राष्ट्रीय कार्य योजना: जलवायु परिवर्तन पर.” नई दिल्ली: MoEFCC, 2017.
केंद्रीय कृषि अनुसंधान परिषद. कृषि के क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन: चुनौतियाँ एवं अवसर. नई दिल्ली: ICAR, 2016.
केंद्रीय कृषि अनुसंधान परिषद. जलवायु स्मार्ट कृषि प्रथाएँ. नई दिल्ली: ICAR, 2018.
केंद्रीय जल आयोग. भारत में जल संसाधन की स्थिति: वार्षिक रिपोर्ट 2020. नई दिल्ली: CWC, 2021.
केंद्रीय जल आयोग. राजस्थान के लिए जल प्रबंधन अध्ययन. नई दिल्ली: CWC, 2019.
केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान. शुष्क क्षेत्रों में कृषि प्रणाली: एक अध्ययन. जोधपुर: ICAR–CAZRI, 2017.
केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान. मृदा प्रबंधन एवं जलवायु परिवर्तन अनुकूलन. जैसलमेर: ICAR–CAZRI, 2019.
राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय. राजस्थान में भू-स्थानिक तकनीक एवं कृषि. बीकानेर: RAU, 2020.
राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय. राजस्थान के सूखे-प्रभावित जिलों में फसल पैटर्न का विश्लेषण. बीकानेर: RAU, 2018.
भारत सरकार, जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय. भारत में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: एक अवलोकन. नई दिल्ली: MoWR, 2018.
अंतर-सरकारी पैनल ऑन जलवायु परिवर्तन (IPCC). पंचम मूल्यांकन रिपोर्ट: भारत पर प्रभाव (हिंदी अनुवाद). जेनेवा: IPCC, 2014.
राष्ट्रीय दूरसंवेदी विज्ञान केंद्र, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन. भू-स्थानिक तकनीकों का उपयोग कर राजस्थान में जल परिवर्तन अध्ययन. हैदराबाद: NRSC, 2021.
अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन. भू-स्थानिक विश्लेषण पाठ्यक्रम. अहमदाबाद: SAC, 2020.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन. रिमोट सेंसिंग एवं कृषितंत्र. बेंगलुरु: ISRO, 2019.
सिंह, अरविंद. जलवायु परिवर्तन एवं कृषि. जयपुर: राजस्थानी पब्लिशर्स, 2015.
शर्मा, प्रियंका. राजस्थान में जलवायु परिवर्तन: प्रभाव एवं अनुकूलन. जयपुर: महादेव पब्लिशिंग, 2018.
चौधरी, सुरेश. शुष्क क्षेत्र की कृषि: समस्याएँ एवं समाधान. जयपुर: राजस्थान विश्वविद्यालय प्रकाशन, 2016.
वर्मा, राजेश. आधुनिक कृषि में भू-स्थानिक विश्लेषण. नई दिल्ली: मानव प्रकाशन, 2019.
देशमुख, दीपक. GIS आधारित कृषि मॉनिटरिंग. नागपुर: राष्ट्रीय भू-स्थानिक संस्थान, 2020.
मिश्रा, पंकज. जलवायु परिवर्तन की चुनौतियाँ: एक अंतर-क्षेत्रीय अध्ययन. दिल्ली: ज्ञानदीप प्रकाशन, 2017.
पटेल, अनुजा. पर्यावरणीय भू-स्थानिक विज्ञान. मुंबई: एवरेस्ट पब्लिशर्स, 2021.
सिंह, महेंद्र. “राजस्थान में खनिज पानी उपलब्धता पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव.” PhD diss., राजस्थान विश्वविद्यालय, 2019.
पटेल, अंजलि. “राजस्थान के कृषि उत्पादन में भू-स्थानिक तकनीक का प्रयोग.” M.Sc. thesis, बीकानेर कृषि विश्वविद्यालय, 2020.
गुप्ता, दीपक कुमार. “बारां जिले में फसल विविधता एवं जलवायु परिवर्तन का संबंध.” M.Phil thesis, जयपुर विश्वविद्यालय, 2018.